द गर्ल इन रूम 105
डिस्टर्बेस वाली कोई बात ही नहीं। मेहमानों से मिलकर अच्छा ही लगता है, खासतौर पर वे जो हमारे काम की कद्र करते हों। आइए, मैं आपको कैंप का वह हिस्सा दिखा दूं, जहां पर सिविलियंस को जाने की इजाज़त है।"
हम सैनिकों के टेंट्स और फायरिंग रेंज के इर्द-गिर्द चलने लगे। टूर के बाद फ़ैज़ हमें कैंप के गेट तक छोड़ने
आए। हम दोनों साथ चल रहे थे, जबकि सौरभ हमसे कुछ क़दम आगे था।
"जारा के मामले में मेरे पास लेटेस्ट न्यूज़ नहीं है। क्या हो रहा है उसमें?" फ़ैज़ ने कहा। 'वही लक्ष्मण हिरासत में है। मुकदमा अभी शुरू नहीं हुआ, 'मैंने कहा।
'कातिल वही है ना?'
"उन्हें कोई और ऐसा आदमी नहीं मिला है, जिस पर शक हो। तो लगता तो यही है कि लक्ष्मण ने ही जारा
को मारा था,' मैंने कहा। मेरे हाथ जेब में थे और मेरी उंगलियां ईयररिंग्स को छू रही थीं।
'बास्टर्ड, मैं उम्मीद करता हूं कि उसको मौत की सजा दी जाएगी फ़ैज़ ने कहा।
"क्या जारा ने आपसे कभी किसी और चीज़ के बारे में बात की थी? मैंने कहा। कैप्टन थोड़े-से तन गए। पहली बार वो इस बातचीत के दौरान थोड़ा असहज लगे थे। लेकिन उन्होंने जल्द ही रिकवर कर लिया।
'कोई और चीज़, जैसे कि?'
' जैसे कि क्या ज़ारा ने कभी आपको बताया था कि उसके कोई दुश्मन हैं? या कभी उसने
महसूस किया था?"
कोई खतरा
'बिलकुल नहीं। वो नॉर्मल थी और अपनी लाइफ को लेकर एक्साइटेड रहती थी। क्यों?" 'कुछ नहीं बस ऐसे ही। मैंने आपको बताया था ना कि मैं उसकी मौत के सदमे से अभी उबर नहीं पाया हूँ।"" 'मैं भी। लेकिन ये बॉचमैन लोग। ये गांव देहात से आते हैं और अनपढ़ होते हैं। प्राइवेट सिक्योरिटी गार्डी की फ़ौज के जवानों से कोई तुलना ही नहीं की जा सकती।'
'बिलकुल, ' मैंने कहा।
हम कैंप के गेट तक पहुंच गए। ड्राइवर अपनी कार लेकर वहां पहुंच गया था और सौरभ उसमें बैठने लगा
"क्या आप सिकंदर को अच्छे से जानते थे?" मैंने फ़िज़ से कहा।
था।
फ़ैज़ ने सनग्लासेस चढ़ा लिए।
'जारा का सौतेला भाई? नहीं। ज़ारा और मेरी दोस्ती उसके दिल्ली आने के बाद ही हुई थी।' 'वो सिकंदर को बहुत प्यार करती थी।'
फ़ैज़ ने कंधे उचका दिए। वो ऐसी ही थी, सबको प्यार करने वाली, सबका ख्याल रखने वाली। वो इस
तरह का अंत डिज़र्व नहीं करती थी। खैर मेरे ख्याल से तुम्हारा ड्राइवर तुम्हारा इंतजार कर रहा है।'
"तुम सीधे अंगारों पर बैठकर खुद ही क्यों नहीं पक जाते?" मैंने कहा। हम शिकारा रेस्तरां में आए थे, जो हमारी
हाउसबोट से थोड़ी ही दूरी पर था। रेस्तरां के बाहर जूट की चारपाई पर बैठने की व्यवस्था थी। हर चारपाई के
पास अंगीठी थी। कश्मीर में कड़ाके की सर्दी थी और तापमान गिरकर तीन डिग्री पर आ गया था। सौरभ अंगीठी
में सुलग रहे अंगारों से एकदम सटकर बैठा हुआ था। उसने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया, केवल उसके दांत किटकिटाते रहे। 'हाउसबोट पर वापस चलते हैं, ' मैंने कहा 'वहां अच्छा खाना पकता है।'
'नहीं, मैं ठीक हूं। मैंने सुना है कि यहां का वाज़वां बहुत उम्दा होता है,' सौरभ ने अपने हाथ रगड़ते हुए वेटर ने सौरभ की यह हालत देखी तो हमारे लिए दो ब्लैकेट ले आया। हमने अपने को ब्लैकेट्स में लपेट
कहा।
लिया। दस मिनट बाद जाकर सौरभ बात करने की हालत में आया। 'कैप्टन के साथ कुछ अजीब बात है, ' मैंने कहा